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Showing posts from August, 2021

Ghazal_Rashid Ali Markhiani

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जहान_ए_ख़्वाब का सहरा खंगालना न पड़े थकन के खौफ को दिल में संभालना न पड़े तू मेरी आंख से पढ़ ले मेरी अज़िय्यत को उदास झील में पत्थर उछालना न पड़े कभी तो दोस्त मुझे जिंदगी में मुयस्सर हो  कभी तो अहद ये फ़र्दा पे डालना न पड़े ख़ुदा करे कि वो रस्ता मिले जहां मुझको दिल_ओ_दिमाग़ को उलझन में डालना न पड़े ए मेरे कल़्ब के मालिक मुझे मोहब्बत में विसाल_ओ_हिज्र का सिक्का उछालना न पड़े कहीं पे छांव मिले और उम्र ढल जाए समय की धुप ‌से खु़द को संभालना न पड़े मैं चाहता हूं कि इक रात तू दिखे राशिद जिस एक ख़्वाब से ख़ुद को निकालना न पड़े राशिद अली मरखयानी جہانِ خواب کا صحرا کھنگالنا نہ پڑے تھکن کے خوف کو دل میں سنبھالنا نہ پڑے تو میری آنکھ سے پڑھ لے مری اذّیت کو اُداس جھیل میں پتھر اُچھالنا نہ پڑے کبھی تو دوست مجھے زندگی میّسر ہو کبھی تو عہد یہ فردا پہ ٹالنا نہ پڑے خدا کرے کہ وہ رستا ملے جہاں مجھ کو دل و دماغ کو اُلجھن میں ڈالنا نہ پڑے اے میرے قلب کے مالک مجھے محبت میں وصال و ہجر کا سکہ اچھالنا نہ پڑے کہیں پہ چھاؤں ملے اور عمر ڈھل جائے سمے کی دھوپ سے خود کو سنبھالنا نہ پڑے  میں چاہتا ہوں کہ

Sher_Ata Qazi Ata

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मै अपनी ज़ात से निकला तो यूं हुआ कि अता कुछ और फैल गया गम शश भी जिहात में अताउर रहमान क़ाज़ी میں اپنی ذات سے نکلا تو یوں ہوا کہ عطا کچھ اور پھیل گیا غم بھی شش جہات کے ساتھ عطاءالرحمن قاضی

Nazm(Kavita)_Mohabbat Gahri Hojae_Poet_yusuf Khalid

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मुहब्बत गहरी होजाए तो अपना रुख़ बदलती है तसलसुल तोड़ती है गुफ़्तगू पे चुप की चादर डाल देती है यूसुफ़ खालिद محبت گہری ہو جائے تو اپنا رخ بدلتی ہے تسلسل توڑتی ہے  گفتگو پہ چپ کی چادر ڈال دیتی ہے یوسف خالد

Sher_Poet_Amaanullah Khan Amaan

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इक रिदा_ए_खाम्शी ओढ़ी है सारे शहर ने हर बदन ज़ख्मी है लेकिन बोलता कोई नही AmaanUllah Khan Amaan اک ردائے خامشی اوڑھی ھے سارے شہر نے  ہر بدن زخمی ہے لیکن بولتا کوئی نہیں ۔ امان اللہ خان امانؔ

Sher_Poet_Arsala Shah

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किसी की मुन्तजि़र आंखों के कोने तुम्हारा नाम लेकर भींगते है अरसला کسی کی منتظر آنکھوں کے کونے  تمہارا نام لیکر بھیگتے ہیں  ارسلہ

Ghazal_Poet_Abdur Rehman Wasif

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غزل آپ کے درد گزیدوں کی زباں کھولتے ہیں لفظ قرطاس پہ جب دل کا دُھواں کھولتے ہیں  بڑھتی جاتی ہے تعفّن کی ہلاکت خیزی  زخم اپنے جو کبھی تشنہ لباں کھولتے ہیں منتظر شخص یہ بہتر ہے مزید آس نہ رکھ  دل کا دروازہ وہ ہر اک پہ کہاں کھولتے ہیں  آپ ترکش میں رَکھے تِیر برابر کر لیں ہم عزا خانہِ وَحشت زَدَگاں کھولتے ہیں  لب پہ لاتے ہیں وہ بس ایک تبسم کی رمق اور ہمکتے ہوئے دل رختِ گماں کھولتے ہیں آئیے ! آپ کو ملواتے ہیں بیداری سے  آئیے ! آپ پہ ترتیبِ زماں کھولتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔ عبدالرحمان واصف आप के दर्द गजी़दों की जु़बान खोलते हैं लफ्ज़ कि़रतास पर जब दिल का धुंआ खोलते हैं बढ़ती जाती है त'अफ़्फ़ुन की हिलाकत खैजी  ज़ख्म अपने जो कभी तिश्ना-लबां खोलते हैं मुंतज़िर शख्स ये बेहतर है मजी़द आस न रख दिल का दरवाज़ा वह हर एक पर कहां खोलते हैं आप तरकश में रखे तीर बराबर कर लें हम अज़ा ख़ान_ए_ वहशत ज़दगां खोलते हैं लब पे लाते हैं वह बस एक तबस्सुम की रमक़ और हमकते हुए दिल रख़त_ए_ गुमां खोलते हैं आइए आपको मिलवाते हैं बेदारी से आइए आप पे ये तरतीबे ज़मा खोलते हैं अब्दुर रहमान वासिफ़

Ghazal_Poet_Aaila Tahir

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क़ुर्बतों के नशे याद आने लगे, शाम ठहरी रही राख से सर्द शोले उठाने लगे, शाम ठहरी रही अव्वल अव्वल समाअत में महके हुए बे बहा ज़मज़मे मुस्कुराने लगे, सर उठाने लगे, शाम ठहरी रही तिश्नगी और मैं साथ चलते रहे तारे जलते रहे रेत की धुन पर हम गुनगुने लगे, शाम ठहरी रही कोई वहशत ज़दा उस गली में गया, वक़्त रुक सा गया फिर पलटने में उसको ज़माने लगे, शाम ठहरी रही नाम तेरा किसी ने लिया बज़्म में और तेरे मातमी आंख भरने लगी, नम छुपाने लगे शाम ठहरी रही एक खिड़की खुली याद की , तेज़ बारिश बरसने लगी नक्श़_ए_ला हासली जगमगाने लगे, शाम ठहरी रही इक क़दीमी तमन्ना के साहिल पे कच्चे घरोंदे थे हम तेज़ आंधी चली ,हम ठिकाने लगे , शाम ठहरी रही आईला ताहिर قربتوں کے نشے یاد آنے لگے ، شام ٹھہری رہی راکھ سے سرد شعلے اٹھانے لگے،شام ٹھہری رہی اول اول سماعت میں مہکے ہوئے بے بہا زمزمے  مسکرانے لگے ،سر اٹھانے لگے ،شام ٹھہری رہی تشنگی اور میں ساتھ چلتے رہے تارے جلتے رہے  ریت کی دھن پہ ھم گنگنانے لگے ،شام ٹھہری رہی کوئی وحشت زدہ اس گلی میں گیا، وقت رک سا گیا پھر پلٹنے میں اُس کو زمانے لگے ،شام ٹھہری رہی نام تیرا کسی نے لیا بزم میں

Nazm (कविता)_Poet_Anwar Shamim

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उर्दू/हिंदी.......... اردو/ہندی بلا عنوان                                                                             ● جتنے الفاظ بدن کوزے سے باہر گونجے اور کڑے کوسوں میں دم توڑ گئے جتنے الفاظ چنبیلی کے ہرے منڈوے تلے چاندنی رات کھلے مرجھاۓ جتنے الفاظ بدن زنداں کی دیواروں پر تیز ناخونوں سے دیتے گئے بے انت خراش جتنے الفاظ کہف نیند میں سوۓ مرے ساتھ جتنے الفاظ مرے غار حرا میں اترے شہر آشوب ! ترے نام کیا !! ایک حصّہ مری وحشت کا ہے اور وہ حصّہ مہ طلعت کا ہے جس کے دامن میں مرے کوہ و دمن سمٹے ہوئے جس کی مٹی پہ مری دل کی زمیں پھیلی ہوئ کام اب کیا کسی حجت کا ہے لفظ پہلا وہ محبّت کا ہے                                                                            ● © انورشمیم बिला उनवान*         ● जितने अल्फ़ाज़ बदन कूज़े* से बाहर गूंजे और कड़े कोसों में दम तोड़ गए जितने अल्फ़ाज़ चंबेली के हरे मंडवे तले चांदनी रात खिले मुरझाए जितने अल्फ़ाज़ बदन ज़िंदां* की दीवारों पर तेज़ नाख़ूनों से देते गए बेअंत ख़राश* जितने अल्फ़ाज़ कहफ़*नींद में सोए मेरे साथ जितने अल्फ़ाज़ मेरे ग़ारे*हिरा में उतरे शहरे आशूब ! तेरे नाम किया !! एक ह

Sher_Poet_Shoaib Kiani

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जब मै कहता हूं ख़ुदा कैसा है दिखलाओ मुझे हर कोई अपनी ही तस्वीर उठा लाता है शोएब कयानी جب میں کہتا ہوں خدا کیسا ہے دکھلاؤ مجھے ہر کوئی اپنی ہی تصویر اٹھا لاتا ہے شعیب کیانی

Ghazal_Poet_Ehtisham Shami

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बदन के भेस में पलता गुलाब था कोई ख़बर नहीं वह हकीकत या ख़्वाब था कोई कुछ इस नज़र से उसे पारसा भी देखते थे कि उसको देखते रहना सवाब था कोई हमारे इश्क़ की बुनियाद उसने पूछी है सो अहल _ए_इश्क़ बताओ जवाब था कोई  चहार सम्त है फैली खलीज नफ़रत की किताब_ए_इश्क़ में नफ़रत का बाब था कोई ये मेकदे के हसीन रंग तो बताते हैं के मुझसे पहले यहां पर नवाब था कोई एहतिशाम शामी بدّن کے بھیس میں پلتا گلاب تھا کوئی خبر نہیں وہ حقیقت یا خواب تھا کوئی کچھ اس نظر سے اسے پارسا بھی دیکھتے تھے کہ اس کو دیکھتے رہنا ثواب تھا کوئی ہمارے عشق کی بنیاد اس نے پوچھی تھی سو اہل عشق بتاو جواب تھا کوئی؟ چہار سمت ہے پھیلی خلیج نفرت کی کتاب عشق میں نفرت کا باب تھا کوئی؟ یہ مے کدے کے حسیں رنگ تو بتاتے ہیں کہ مجھ سے پہلے یہاں پر نواب تھا کوئی             احتشام شامی Badan k bhess main palta gulaab tha koi khabar nahi wo haqeeqat ya khawaab tha koi kuch is Nazar se usy parsaa bhi daikhty thy k us ko daikhty rehna sawaab tha koi hamary ishq ki buniyaad us ny poochi ha so ehl-e-ishq batao jawaab tha koi chahaar samt hai

Ghazal_Poet_Abdur Rehman Wasif

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अधूरा शेर जो होकर ग़ज़ल निकलता है हमारे सारे मसाइल का हल निकलता है कुछ अच्छा सोचो अगर ख़ुद में बेहतरीन चाहो कि हुसन_ए_फ़िक्र से हुसन_ए_अमल निकलता है हमी हैं जिनसे नुमु पा रही है विरानी हमें तो मिलके गुलिस्ता भी थल निकलता है हमारे सब्र का फल भी यहीं से फूटेगा इसी ज़मीं की दराड़ों से जल निकलता है उसे कहो कि ज़माने की चाल ठीक नहीं वो शख़्स घर से बहुत आजकल निकलता है अब्दुर रहमान वासिफ़ ادھورا شعر جو ہو کر غزل نکلتا ہے  ہمارے سارے مسائل کا حل نکلتا ہے کچھ اچھا سوچو اگر خود میں بہتری چاہو  کہ حسنِ فکر سے حسنِ عمل نکلتا ہے ہمی ہیں جن سے نمو پارہی ہے ویرانی  ہمیں تو مل کے گلستاں بھی تھل نکلتا ہے ہمارے صبر کا پھل بھی یہیں سے پھوٹے گا اسی زمیں کی دراڑوں سے جل نکلتا ہے اسے کہو کہ زمانے کی چال ٹھیک نہیں  وہ شخص گھر سے بہت آج کل نکلتا ہے ۔ ۔ ۔ عبدالرحمان واصف

Ash'aar_Poet_Shahzad Nayyar

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سایہء درد جو نکلا مرے قد سے بڑھ کر میں نے بے درد کو چاہا بھی تو حد سے بڑھ کر साया_ए_दर्द जो निकला मेरे क़द से बढ़ कर मैंने बेदर्द को चाहा भी तो हद से बढ़ कर واعظو ! خواہشِ زر بھی تو شرارِ شر ہے دل کو یہ آگ جلاتی ہے حسد سے بڑھ کر वाइज़ो । ख़्वाहिश_ए_जर भी तो शरारे शर है दिल को ये आग जलाती है हसद से बढ़ कर دشتِ لیلٰی کا مسافر ہے تو اِتنا سُن لے  اپنی آنکھوں میں جُنُوں باندھ، خِرد سے بڑھ کر दश्त_ए_लैला का मुसाफ़िर है तो इतना सुन ले अपनी आंखों में जूनूं बांध ख़िरद से बढ़ कर शहजाद नय्यर

Sher_Poet_Muhammad Iftikhar Ul Haq

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दरिया_ए_इख्ति़यार जो रस्ता बदल गया।।। सेहरा_ए_जबर तेरा भी नक़्शा  बदल गया मुहम्मद इफ़्तिख़ार उल हक़ دریائے اختیار جو رستا بدل گیا !!! صحرائے جبر تیرا بھی نقشہ بدل گیا Muhammad Iftikhar Ul Haq

Ghazal_Poet_Faqeeh Haider

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،،غزل ،، چراغ نیند کی محراب تک نہیں آیا  قسم ہے آنکھ میں اک خواب تک نہیں آیا चराग़ नींद की मेहराब तक नहीं आया  क़सम है आँख मे एक ख़्वाब तक नहीं आया  سبھی نے شوق ِ شہادت میں سر کٹا دئیے ہیں کوئی بھی جنگ کے اسباب تک نہیں آیا सभी ने शौक़_ए_शहादत मे सर कटा दिए हैँ  कोई भी जंग के असबाब तक नहीं आया ہمارے عشق سے کیسے ملے جنوں کو فروغ  ہمارا عشق تب و تاب تک نہیں آیا हमारे इश्क़ से कैसे मिले जनूं को फ़रोग़  हमारा इश्क़ तब_ओ_ताब तक नहीं आया  ابھی مشیت ِ خالق نہیں پڑھی تونے ؟ ابھی تو سورہ ء احزاب تک نہیں آیا अभी मशीयत_ए_ख़ालिक़ नहीं पढ़ी तु ने  अभी तु सुरह_ए_अहज़ाब तक नहीं आया وہ رنگ زنگ ہوا یا بنا دھواں آخر  جو رنگ اس لب ِ نایاب تک نہیں آیا वह रंग रंग हुआ या बना धुआँ आख़िर  जो रंग उस लब_ए_नायब तक नहीं आया بھرے ہیں مشکوں میں مشکیزگاں نے دریا تک  ہمارے ہاتھ میں تالاب تک نہیں آیا भरे हैँ मुश्कों मे मुश्केजगाँ ने दरया तक  हमारे हाथ मे तालाब तक नहीं आया ندی چڑھی ہے کئی بار میری آنکھوں کی  مگر یہ سلسلہ سیلاب تک نہیں آیا नदी चढ़ी है कई बार मेरी आँखों मे  मगर ये सिलसिला सैलाब तक नहीं आया بہت سے ہاتھ مجھے کھینچتے ر

Ghazal_Poet_Zamir Qais

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शीशे जैसे अक्स को ओढ़ा जा सकता है दिल तो पत्थर का भी तोड़ा जा सकता है सूखे पौधों को भी दे सकते हैं पानी टूटे रिश्तों को भी जोड़ा जा सकता है खोले जा सकते हैं घर के सब दरवाज़े तन्हाई से मुंह भी मोड़ा जा सकता है मुश्किल है लेकिन थोड़ी सी कोशिश करके दिल के कुछ हिस्सों को जोड़ा जा सकता है ख़्वाबों की अंधी गलियों में आग लगाकर सोने वालों को झिंझोडा़ जा सकता है दिल को छूती रहती है जो आस हमेशा उस पगली का हाथ मरोड़ा जा सकता है रस्ता तकते तकते पत्थर हो जाती हैं वरना इन आंखों को फोड़ा जा सकता है है किस काम के दौलत, शोहरत, रिश्ते नाते साथ में कोई लेकर थोड़ा जा सकता है अब भी मेरे कपड़ों में है खुशबू उसकी हिज्र से अब भी विसल निचोड़ा जा सकता है जाने वाली गाड़ी पकड़ी जा सकती है ज़ख़्मी पैरों से भी दौड़ा जा सकता है सिगरेट नोशी सी बे लज़्ज़त आदत हूं मैं मुझको जब जी चाहे छोड़ा जा सकता है इश्क़ नगर है उजड़े दिल वालों की बस्ती कै़स तो करके सीना चौड़ा जा सकता है ज़मीर कै़स شیشے جیسے عکس کو اوڑھا جا سکتا ہے دل تو پتھر کا بھی توڑا جا سکتا ہے سوکھے پودوں کو بھی دے سکتے ہیں پانی ٹوٹے رشتوں کو بھی جوڑا جا سکتا ہ

Ghazal_Poet_Ahmed Imtiaz

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जवाब एक सा है और सवाल एक सा है ये क्या हुआ है कि दोनो का हाल एक सा है  बुलंदियों का वहां है तो पस्तियों का यहां है  बस आसमा_ओ_ज़मीं का कमाल एक सा है हर एक शख्स का अंजाम रायगानी है ये ज़िंदगी है तो सब पे वबाल एक सा है जुदाई  आंख में आंसू हैं मिलना खंदा ब लब फ़िराक एक सा सबका विसाल एक सा है कोई भी साअत खुश रंग आज तक न मिली हमारे वास्ते हर एक साल एक सा है  अहमद इम्तियाज جواب ایک سا ہے اور سوال ایک سا ہے یہ کیا ہوا ہے کہ دونوں کا حال ایک سا ہے بلندیوں کا وہاں ہے تو پستیوں کا  یہاں  بس آسمان و زمیں کا کمال ایک سا ہے ہر ایک شخص کا انجام رائیگانی ہے یہ زندگی ہے تو سب پہ وبال ایک سا ہے جدائی آنکھ میں آنسو ہیں ملنا خندہ بہ لب فراق ایک سا سب کا وصال ایک سا ہے کوئی بھی ساعت خوش رنگ آج تک نہ ملی ہمارے واسطے ہر ایک سال ایک سا ہے احمد امتیاز