Nazm_Ankahi _Poet_ Abdur Rahman Wasif

अनकही

क्या बताएं तुम्हें
कितनी सदियां मुहाजिर परिंदों की *मानिंद*
एक शाख़ से दूसरी शाख़ पर आते जाते कटीं
कितनी आहें उम्मीदों के *अफ़लाक* पर झिलमिलाते कटीं
कितने आंसू सरे *लौह* ए *मिज़्गां* उतारे गए
दुख उभारे गए ।
कितने ख़्वाबों के *बे-खानुमां* जिस्म
सिगरेट के कश में उड़ाए गए
ग़म के त्योहार
 तन्हाइयों में मनाए गए
कितने *नौहे* पसे हलक़ ए *तिश्रा *सलीबों* पे लाए गए
*नम* बुझाए  गए
हाय सीने में लिखी हुई दास्तां
लब  *फसीलों* तलक आते-आते कहीं खो गई
अनकही हो गई

अब्दुर रहमान वासिफ़

*मानिंद* _ की तरह
*अफ़लाक* _आकाश

*लौह‌*_ लिखने की तख़्ती, मुखपृष्ठ, क़ब्र पर मृतक के नाम का पत्थर

*मिज़्गां* _ पलकें

*बे_खा़नुमा* _जिसका घर-बार नष्ट हो गया हो, बे-घर, बेठिकाना, आवारा
परेशान हाल

*नौहा* _ मातम के समय गाया जाने वाला गीत, शोकगीत, रोना पीटना, मातम, स्यापा, बैन करना, मुर्दे के लिए चिल्ला कर रोना, मृतक के लिए रोना-पीटना

*तिश्रा*_ प्यासा, तृषित, पिपासित, अतृप्त, जिसका जी न भरा हो,  ख़्वाहिशमंद, लालसा, इच्छुक

*सलीब* _ सूली, फाँसी, चलीपा, लकड़ी के एक उपकरण का नाम जिसपर चढ़ा कर अप्राधियों को कठोर दंड दे कर मृत्युदंड दिया जाता है

*नम* _गीला , भीगा

*फ़सील* _ दीवार, प्राचीर, चारदीवारी, चहारदीवारी, वह दीवार जो नगर के चारों ओर बनायी जाय, वह दीवार जो क़िले के चारों ओर खींची जाय

ان کہی
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کیا بتائیں تمہیں..... 
کتنی صدیاں مہاجر پرندوں کی مانند
اک شاخ سے دوسری شاخ پر آتے جاتے کٹیں
کتنی آہیں امیدوں کے افلاک پر جھلملاتے کٹیں! 
کتنے آنسو سرِ لوحِ مژگاں اتارے گئے
دکھ ابھارے گئے!
کتنے خوابوں کے بے خانماں جسم  
سگریٹ کے کش میں اڑائے گئے
غم کے تیوہار 
تنہائیوں میں منائے گئے....! 
کتنے نوحے پسِ حلقِ تشنہ صلیبوں پہ لائے گئے
نم بجھائے گئے....!
 ہائے سینے میں لکھی ہوئی داستاں
لب فصیلوں تلک آتے آتے کہیں کھوگئی
ان کہی ہو گئی....!
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عبدالرحمان واصف

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