Ghazal_Poet_Faqeeh Haider

،،غزل ،،

چراغ نیند کی محراب تک نہیں آیا 
قسم ہے آنکھ میں اک خواب تک نہیں آیا
चराग़ नींद की मेहराब तक नहीं आया 
क़सम है आँख मे एक ख़्वाब तक नहीं आया 

سبھی نے شوق ِ شہادت میں سر کٹا دئیے ہیں
کوئی بھی جنگ کے اسباب تک نہیں آیا

सभी ने शौक़_ए_शहादत मे सर कटा दिए हैँ 
कोई भी जंग के असबाब तक नहीं आया

ہمارے عشق سے کیسے ملے جنوں کو فروغ 
ہمارا عشق تب و تاب تک نہیں آیا
हमारे इश्क़ से कैसे मिले जनूं को फ़रोग़ 
हमारा इश्क़ तब_ओ_ताब तक नहीं आया 

ابھی مشیت ِ خالق نہیں پڑھی تونے ؟
ابھی تو سورہ ء احزاب تک نہیں آیا

अभी मशीयत_ए_ख़ालिक़ नहीं पढ़ी तु ने 
अभी तु सुरह_ए_अहज़ाब तक नहीं आया

وہ رنگ زنگ ہوا یا بنا دھواں آخر 
جو رنگ اس لب ِ نایاب تک نہیں آیا
वह रंग रंग हुआ या बना धुआँ आख़िर 
जो रंग उस लब_ए_नायब तक नहीं आया

بھرے ہیں مشکوں میں مشکیزگاں نے دریا تک 
ہمارے ہاتھ میں تالاب تک نہیں آیا
भरे हैँ मुश्कों मे मुश्केजगाँ ने दरया तक 
हमारे हाथ मे तालाब तक नहीं आया

ندی چڑھی ہے کئی بار میری آنکھوں کی 
مگر یہ سلسلہ سیلاب تک نہیں آیا
नदी चढ़ी है कई बार मेरी आँखों मे 
मगर ये सिलसिला सैलाब तक नहीं आया

بہت سے ہاتھ مجھے کھینچتے رہے دربار 
مگر میں منصب و القاب تک نہیں آیا
बहुत से हाथ मुझे खींचते रहें दरबार 
मगर मैं मनसब_ओ_ अलक़ाब तक नहीं आया

عدو کے سامنے پھیلاؤں کس طرح حیدر
یہ ہاتھ تو کبھی احباب تک نہیں آیا
अदू के सामने फैलाऊँ किस तरह हैदर 
ये हाथ तो कभी अहबाब तक नहीं आया

Faqeeh Haider

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