Ghazal_Poet_Zamir Qais


शीशे जैसे अक्स को ओढ़ा जा सकता है
दिल तो पत्थर का भी तोड़ा जा सकता है

सूखे पौधों को भी दे सकते हैं पानी
टूटे रिश्तों को भी जोड़ा जा सकता है

खोले जा सकते हैं घर के सब दरवाज़े
तन्हाई से मुंह भी मोड़ा जा सकता है

मुश्किल है लेकिन थोड़ी सी कोशिश करके
दिल के कुछ हिस्सों को जोड़ा जा सकता है

ख़्वाबों की अंधी गलियों में आग लगाकर
सोने वालों को झिंझोडा़ जा सकता है

दिल को छूती रहती है जो आस हमेशा
उस पगली का हाथ मरोड़ा जा सकता है

रस्ता तकते तकते पत्थर हो जाती हैं
वरना इन आंखों को फोड़ा जा सकता है

है किस काम के दौलत, शोहरत, रिश्ते नाते
साथ में कोई लेकर थोड़ा जा सकता है

अब भी मेरे कपड़ों में है खुशबू उसकी
हिज्र से अब भी विसल निचोड़ा जा सकता है

जाने वाली गाड़ी पकड़ी जा सकती है
ज़ख़्मी पैरों से भी दौड़ा जा सकता है

सिगरेट नोशी सी बे लज़्ज़त आदत हूं मैं
मुझको जब जी चाहे छोड़ा जा सकता है

इश्क़ नगर है उजड़े दिल वालों की बस्ती
कै़स तो करके सीना चौड़ा जा सकता है
ज़मीर कै़स

شیشے جیسے عکس کو اوڑھا جا سکتا ہے
دل تو پتھر کا بھی توڑا جا سکتا ہے

سوکھے پودوں کو بھی دے سکتے ہیں پانی
ٹوٹے رشتوں کو بھی جوڑا جا سکتا ہے

کھولے جا سکتے ہیں گھر کے سب دروازے
تنہائی سے منہ بھی موڑا جا سکتا ہے

مشکل ہے لیکن تھوڑی سی کوشش کر کے
دل کے کچھ حصوں کو جوڑا جا سکتا ہے

خوابوں کی اندھی گلیوں میں آگ لگا کر
سونے والوں کو جھنجھوڑا جا سکتا ہے

دل کو چٌھوتی رہتی ہے جو آس ہمیشہ
اس پگلی کا ہاتھ مروڑا جا سکتا ہے

رستہ تکتے تکتے پتھر ہو جاتی ہیں
ورنہ ان آنکھوں کو پھوڑا جا سکتا ہے

ہیں کس کام کے دولت ، شہرت ، رشتے ناتے
ساتھ میں کوئی لے کر تھوڑا جا سکتا ہے

اب بھی میرے کپڑوں میں ہے خوشبو اس کی
ہجر سے اب بھی وصل نچوڑا جا سکتا ہے

جانے والی گاڑی پکڑی جا سکتی ہے
زخمی پیروں سے بھی دوڑا جا سکتا ہے

سگرٹ نوشی سی بے لذت عادت ہوں میں
مجھ کو جب جی چاہے چھوڑا جا سکتا ہے

عشق نگر ہے اجڑے دل والوں کی بستی
قیس تو کر کے سینہ چوڑا جا سکتا ہے

ضمیر قیس

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