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Showing posts from July, 2021

Ghazal_Poet_Dr.Kabir Athar

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पलक से रूह तलक सोगवार बैठा हूं मैं सब्र_ओ_शुक्र की खिल'त उतार बैठा हूं और अब तो खा़क से बाहर हैं कोंपले मेरी जो वक्त मुझ पे कड़ा था गुज़ार बैठा हूं वह ताक़ ए दिल से हो या ताक़ ए जिंदगानी से मैं हर चिराग़ पे परवाना वार बैठा हूं न जाने किस लिए मैने संभाल रखा था वह हौसला जो मुसीबत में हार बैठा हूं मुझे अंधेरों ने महसूर कर लिया है कबीर ये किस चिराग़ को मैं फूंक मार बैठा हूं शायर डॉक्टर कबीर अतहर پلک سے روح تلک سوگوار بیٹھا ہوں میں صبر و شکر کی خلعت اُتار بیٹھا ہوں اور اب تو خاک سے باہر ہیں کونپلیں میری جو وقت مجھ پہ کڑا تھا گزار بیٹھا ہوں وہ طاقِ دل سے ہو یا طاقِ زندگانی سے میں ہر چراغ پہ پروانہ وار بیٹھا ہوں نجانے کس لیے میں نے سنبھال رکھا تھا وہ حوصلہ جو مصیبت میں ہار بیٹھا ہوں مجھے اندھیروں نے محصور کر لیا ہے کبیر یہ کس چراغ کو میں پھونک مار بیٹھا ہوں #شاعر ڈاکٹر کبیر اطہر

Ghazal_Poet_Sarwat Mukhtar

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दर्द तहरीर कर लिया जाए ग़म को तस्वीर कर लिया जाए करबला को अगर जरूरत हो खूं जिगर चीर कर लिया जाए दर्द छलके ना आंख से टपके मिसरा ए मीर कर लिया जाए खुद को कैदी अगर बनाना हो तुमको ज़ंजीर कर लिया जाए झुटे ख़्वाबों का एक ताज महल फिर से तामीर कर लिया जाए भर के सरवत मिठास लहजे में बात को तीर कर लिया जाए सरवत मुख्तार درد تحریر کر لیا جائے  غم کو تصویر کر لیا جائے  کربلا کو اگر ضرورت ہو  خوں ، جگر چیر کر لیا جائے  درد چھلکے نا آنکھ سے ٹپکے  مصرع۔ میر کر لیا جائے  خود کو قیدی اگر بنانا ہو. تم کو زنجیر کر لیا جائے  جھوٹے خوابوں کا ایک تاج محل. پھر سے تعمیر کر لیا جائے؟  بھر کے ثروت مٹھاس لہجے میں. بات کو تیر کر لیا جائے  ثروت مختار

Sher_Poet_Suhail Rai

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ہم کسی آنکھ کے شہر میں قید ہیں  زندگی نیند ہے آدمی خواب ہیں سہیل رائے हम किसी आंख के शहर में क़ैद हैं ज़िंदगी नींद है आदमी ख़्वाब है सोहैल राय

Sher_Poet_Isar Shaukat

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किताब ए कै़स से नुस्खा़ निकाल लाया हूं वबा ए ग़म के मरीज़ो दवाई ले जाओ इसार کتاب قیس سے نسخہ نکال لایا ہوں وبائے غم کے مریضو دوائی لے جاؤ                             ایثار

Sher_Poet_Hasan Zaidi

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तुम्हारे ‌बाद किसी और को जुदा करके पुराने ग़म को मनाया गया नया करके हसन ज़ैदी تمہارے بعد کسی اور کو جدا کر کے  پرانے غم کو منایا گیا نیا کر کے  حسن زیدی

Nazm_Baawri_Poet Rashid Malik

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बावरी आंखें तेरी नूर का मंबा मीठे तेरे बोल रूप सलोना जैसे सोना  धातों में अनमोल रंग चुराए तुझसे शामें तू काजि़ब का का नूर तेरा होना ख़ुशकुन ऐसे फ़सल उठाए बौर तेरा जागा नींद से भागे जैसे कोई भूत तुझ को छूने वाला जैसे अवतारों का पूत तू सखियों में ऐसे सुंदर जैसे गंगा चोटी तेरा हुस्न निराला ऐसे जैसे मरवारीद के मोती तू जिसको देखे वह चमके जैसे पूरन चांद जो तुझको सुन ले वो सारे जन्मों तेरा बांद मेरे घर की बेलें , बूटे मेरे घर की शाम मेरी सारी ग़ज़लें नज़्में मेरे क़ते तेरे नाम राशिद मलिक باوری آنکھیں تیری نور کا منبع میٹھے تیرے بول روپ سلونا جیسے سونا دھاتوں میں انمول رنگ چرائیں تجھ سے شامیں تو کاذب کا نور تیرا ہونا خوش کن ایسے فصل اٹھائے بور تیرا جاگا نیند سے بھاگے جیسے کوئی بھوت تجھ کو چھونے والا جیسے اوتاروں کا پوت تو سکھیوں میں ایسے سندر جیسے گنگا چوٹی** تیرا حسن نرالا ایسے مروارید کے موتی تو جس کو دیکھے وہ چمکے جیسے پورن چاند جو تجھ کو سن لے وہ سارے جنموں تیرا باند میرے گھر کی بیلیں بوٹے میرے گھر کی شام میری ساری نظمیں، غزلیں، قطعے تیرے نام راشد ملک 

Sher_Poet_Naeem Ahmad Naeem

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Ghazal_Poet_Faqeeh Haider

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दिल उजड़ जाए मेरी आंख भी वीरान ना हो कैसे मुमकिन है जुनूं में कोई नुकसान ना हो उंगलियां हम पे उठाते हैं वही सारे लोग जिनका अपना कोई शजरा कोई पहचान ना हो इतनी वीरानी कभी पहले नहीं देखी थी कोई तो मुझसे कहे यार परेशान ना हो ख़ून देते हुए गुज़री है मेरी सारी उम्र जिंदगी कहता हूं मैं जिसको बलिदान ना हो ऐसे लोगों पे तरस आता है मुझको जिनका आंख होते हुए भी ख़्वाब पे ईमान ना हो फूल लाया है कोई मेरे लिए ठीक मगर जिसको गुलदान समझता हूं नमकदान ना हो किसी मुश्किल से गुजऱने की मुझे ख़्वाहिश है  ऐसी मुश्किल जो किसी तौर में आसाम ना हो दशत में घूमता हूं, नाचता हूं, सोचता हूं दशत भी मेरे मकां का कहीं दालान ना हो ऐसे लोगों में मेरी शायरी की क्या औका़त मो'तबर जिनके लिए मीर का दीवान ना हो उस उदासी पे अजीयत पे पड़े खा़क फ़कीह नम अगर आंख मेरी हिज्र के दौरान ना हो फ़की़ह हैदर ،، غزل ،، دل اُجڑ جائے مری آنکھ بھی ویران نہ ہو   کیسے ممکن ہے جنوں میں کوئی نقصان نہ ہو ؟ انگلیاں ہم پہ اٹھاتے ہیں وہی سارے لوگ    جن کا اپنا کوئی شجرہ کوئی پہچان نہ ہو اتنی ویرانی کبھی پہلے نہیں دیک

Sher_Poet_Asif Mahmood Kaifi

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तुम्हारे ख़त भी सलामत तुम्हारी खु़शबू भी तुम अब भी ऐसा समझती हो कितनी पागल हो आसिफ़ महमूद कैफ़ी تمہارے خط بھی سلامت تمہاری خوشبو بھی تم اب بھی ایسا سمجھتی ھو کتنی پاگل ھو ! آصؔف محمود کیفی

Nazm_Meine Kaha_Poet_ Khair Zaman Rashid

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मैंने कहा ।।।। चल चलाओ का  मौसम है यार एहतियात कर एक नजर  मुझे  देखा और कहा कब नहीं था ?? कोई और बात कर !! खै़र ज़मा राशिद میں نے کہا!!! چل چلاؤکا  موسم ہے یار  احتیاط کر  اک نظر  مجھے  دیکھااور  کہا کب نہیں تھا؟؟ کوئی اور بات کر!!! خیر زماں راشد

Sher_Poet_ Janaan Malik

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अलमारी के एक खा़ने में याद किसी की रखी और उसकी चाबी लटका दी है आती जाती सांसों से जानां‌ मलिक الماری کے اک خانے میں یاد کسی کی رکھی اور  اس کی چابی لٹکا دی ہے آتی جاتی سانسوں سے جاناں ملک

Sher_Poet_Atif Javed Atif

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बड़ा है शौक़ झीलों पर तुम्हें जुगनू पकड़ने का वह आंखें खूबसूरत है सय्याहत क्यों नहीं करते आतिफ़ जावेद आतिफ़ بڑا ہے شوق جھیلوں پر تمہیں جگنو پکڑنے کا وہ آنکھیں خوبصورت ہیں سیاحت کیوں نہیں کرتے عاطف جاوید عاطف

Nazm_Ankahi _Poet_ Abdur Rahman Wasif

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अनकही क्या बताएं तुम्हें कितनी सदियां मुहाजिर परिंदों की *मानिंद* एक शाख़ से दूसरी शाख़ पर आते जाते कटीं कितनी आहें उम्मीदों के *अफ़लाक* पर झिलमिलाते कटीं कितने आंसू सरे *लौह* ए *मिज़्गां* उतारे गए दुख उभारे गए । कितने ख़्वाबों के *बे-खानुमां* जिस्म सिगरेट के कश में उड़ाए गए ग़म के त्योहार  तन्हाइयों में मनाए गए कितने *नौहे* पसे हलक़ ए *तिश्रा *सलीबों* पे लाए गए *नम* बुझाए  गए हाय सीने में लिखी हुई दास्तां लब  *फसीलों* तलक आते-आते कहीं खो गई अनकही हो गई अब्दुर रहमान वासिफ़ *मानिंद* _ की तरह *अफ़लाक* _आकाश *लौह‌*_ लिखने की तख़्ती, मुखपृष्ठ, क़ब्र पर मृतक के नाम का पत्थर *मिज़्गां* _ पलकें *बे_खा़नुमा* _जिसका घर-बार नष्ट हो गया हो, बे-घर, बेठिकाना, आवारा परेशान हाल *नौहा* _ मातम के समय गाया जाने वाला गीत, शोकगीत, रोना पीटना, मातम, स्यापा, बैन करना, मुर्दे के लिए चिल्ला कर रोना, मृतक के लिए रोना-पीटना *तिश्रा*_ प्यासा, तृषित, पिपासित, अतृप्त, जिसका जी न भरा हो,  ख़्वाहिशमंद, लालसा, इच्छुक *सलीब* _ सूली, फाँसी, चलीपा, लकड़ी के एक उपकरण का नाम जिसपर चढ़ा कर अप्राधियों को कठोर दंड दे कर मृत्युदंड

Sher_Poet_Ghazal Qazi

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इस क़दर ज़ब्त ने तोड़ा है मुझे नक्श़ चेहरे पर उभर आए हैं ग़ज़ल क़ाज़ी اِس قدر ضبط نے توڑا ہے مجھے  نقش چہرے پہ اُبھر آئے ہیں  __ غزل قاضی

Ghazal_Poet_Zahid Khan

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क़बूल है दिल ए नादां को हर कहा उसका यह कौन है जो सुनता है मुद्द'आ उसका भुला दिया था उसे वक्त के थपेड़ों ने हवा ए शब ने  मगर ज़िक्र कर लिया उसका सराब होती हुई मौज की तलब में कहीं भटक गया है ज़माने से नाख़ुदा उसका तवील चुपकी सरासिमगी  क़यामत में बहाल हो ही गया दिल से राब्ता उसका अजल नहीं कि वो रस्ता है ज़िंदगानी का बहुत चखा है ज़माने ने जा़यका़ उसका तवील शब की ब्रागेंख़ता  सयाही में चमक रहा है बहुत दूर नक्श़ पा उसका बहुत  ही खुश हुआ एक दिन यह राज़ जान के वह बहुत अकेला है उसकी तरह ख़ुदा उसका जा़हिद खा़न قبول ہے دلِ ناداں کو ہر کہا اُس کا یہ کون ہے جو سُناتا ہے مُدّعا اُس کا بُھلا دیا تھا اُسے وقت کے تھپیڑوں نے ہوائے شب نے مگر ذکر کر لیا اُس کا سراب ہوتی ہوئی موج کی طلب میں کہیں بھٹک گیا ہے زمانے سے ناخُدا اُس کا طویل چُپ کی سراسیمگی قیامت میں بحال ہو ہی گیا دل سے رابطہ اُس کا اَجل نہیں کہ وہ رستہ ہے زندگانی کا بہت چکھا ہے زمانے نے ذائقہ اُس کا طویل شَب کی برانگیختہ سیاہی میں چمک رہا ہے بہت دور نقشِ پا اُس کا بہت ہی خوش ہوا اک دن یہ راز جان کے وہ بہت اکیلا ہے اُس کی طرح خُد

Sher_Poet_ Suresh Sherma

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बन के रफ़ीक-ए-आइना, सूरत क्या दिखा दी! रूठे हैं तभी से और बात भी नहीं की।  सुरेश शर्मा  بن کر رفیق_ آئینہ صورت کیا دیکھا دی  روٹھے ہیں تبھی سے اور بات بھی نہ کی  سریش شرما

Nazm_ Kamal Funn Hai_Poet_ Atif Javed Atif

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कमाल फ़न है चमकती आंखों में दर्द भर के हर एक आंसू को ज़प्त कर के सुलगते ख़्वाबों की राख लेकर यूं अपनी आंखें उजाल रखना कमाल फ़न है? बड़ी सहुलत से सुर्ख़ आंखों की सरहदो तक फ़शारे खूं को सजा के रखना, हुनर है जानां । जुबां के पत्थर उछालते हैं यह शहर वाले तो ऐसे आलम में किर्चियों को बचाए रखना, हसीन चेहरे पर मुस्कुराहट सजाए रखना. सजा के लब पर यह सुर्ख़  लाली खु़द अपने ज़ख्मों पे मुस्कुराना---कमाल फ़न है--। मलाल_ओ_ वहशत के टुकड़े टुकड़े शिकस्ता तर दिल के आईने में सियाह जु़ल्फों के पेच_ओ_ ख़म को संवार लाना कमाल फ़न है---! हसीन लड़की!! तुम्हारे चेहरे से लग रहा है कि तुम मोहब्बत में बेवफा़ई के सब अजा़बों  से आशना हो- मगर उदासी का इसतेआरा! की एक आंसू भी चश्म ए ख़ुश में लगे सितारा हुनर तुम्हारा--! हसीन लड़की तुम्हारा असलूब कह रहा है-- तुम्हें मोहब्बत की नोहाखा़नी पे दस्तरस है-- आतिफ़ जावेद आतिफ़ کمال فن ہے"  چمکتی آنکھوں میں درد  بھر کے  ۔۔ ہر ایک آنسو کو ضبط کر کے۔ ۔۔ سلگتے خوابوں  کی راکھ لیکر  یوں اپنی آنکھیں  اُجال رکھنا ۔۔ کمال فن ہے۔ ۔؟   بڑی سہولت سے سرخ آنکھوں کی سرحدوں تک فشارِخوں کو

Ghazal_Poet_Aamir Abeez

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रगों की सतह पे पुख़्ता उभार करता हुआ है एक रोग मुसलसल फ़शार करता हुआ है एक ज़मीं, फ़लक की तवाफ़ में रक़्सां एक आसमां, ज़मीं को मदार करता हुआ हवा का ऐसा तहर्रुक नवाह से  गुज़रा दरुनी मौसमों को बेक़रार करता हुआ वह एक लम्स किसी मुअज्ज़े से कम तो नहीं बदन की लम्स को यकसर शरार करता हुआ ज़मां की सैर को कुंज ए ख़ला में पहुंचा है धुएं की खेप को वह तार तार करता हुआ कोई वजूद है मुझमें ज़ुजाज की सूरत जो कुन के भेद को है ताबकार करता हुआ आमिर अबीज़ غزل رگوں کی سطح پہ پختہ ابھار کرتا ہوا ہے ایک روگ مسلسل فشار کرتا ہوا ہے اک زمین ، فلک کے طواف میں رقصاں اک آسمان ، زمیں کو مدار کرتا ہوا ہوا کا ایسا تحرک نواح سے گزرا درونی موسموں کو بے قرار کرتا ہوا وہ ایک لمس کسی معجزے سے کم تو نہیں  بدن کی برف کو یکسر شرار کرتا ہوا زماں کی سیر کو کنجِ خلا میں پہنچا ہے دھویں کی کھیپ کو وہ تار تار کرتا ہوا کوئی وجود ہے مجھ میں زجاج کی صورت جو کُن کے بھید کو ہے تابکار کرتا ہوا عامرابیض

Nazm_Dushman_Poet_Sharshar Faqeerzada

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दुश्मन किसी भी गोरी कलूटी काली किसी भी लड़की से बात करना किसी भी चुपचाप बोलती खा़रतन, खुश बदन हसीना से बात करना उसको सुनना   कुछ ना कहना व कुछ ना सुनना किसी भी लड़की की खामोशी से ही लुत्फ़ लेना किसी भी लड़की से प्यार करना  किसी भी लड़की से इश्क करने का रास्ता अब तलक खुला  है किसी भी लड़की को चाहने का  अब तलक मुझ में हौसला है किसी किसी भी लड़की _____ ओ कोई लड़की तुम्हारी उल्फ़त में इतने सारे  हैं ज़ख़्म खाए कि कुछ न पूछो और उनका तेरे सिवा किसी भी हसीना,  डायन मिज़ाज लड़की किसी भी लड़की को चाहना दरमन व दवा है मगर मैं तुझको ही चाहता हूं मेरा अदू  तेरा अब्बा नहीं है मैं  आप खुद हूं सरशार फ़कीधरजा़दा دشمن 😉😂 کسی بھی گوری ، کلوٹی کالی  کسی بھی لڑکی سے بات کرنا  کسی بھی چپ چاپ ، بولتی، خار تن، خوش بدن حسینہ سے بات کرنا  یا اس کو سننا  یا کچھ نہ کہنا و کچھ نہ سننا  کسی بھی لڑکی کی خامشی سے ہی لطف لینا  کسی بھی لڑکی سے پیار کرنا  کسی بھی لڑکی سے عشق کرنے کا راستہ اب تلک کھلا ہے  کسی بھی لڑکی کو چاہنے کا ابھی تلک مجھ میں حوصلہ ہے  کسی بھی لڑکی ___ او کوئی لڑکی  تمہاری الفت میں اتنے

Nazm_Piter ko kya moat pari hai _Poet_Azhar Fragh

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पीटर को क्या मौत पड़ी है सोच रहा हूं बाहर जाकर किससे पूछूं पीटर को क्या मौत पड़ी है  आज गली में  झाड़ू की आवाज़ से पहले दिन निकला है नजारों की उजलेपन का   भेद खुला है किसी का थूका हुआ किसी की  राह गुज़र में पड़ा हुआ है त्योहारों के दिन भी काम पर आने वाला  कैसे गफ़लत कर सकता है हां यह बात अलग है पीटर मर सकता है अच्छा ख़ैर ख़ुदा की मर्ज़ी वैसे भी उसके मरने से  कॉलोनी में कहां किसी को फ़र्क पड़ेगा शायद इतना फर्क पड़ेगा क यह जो मेरे दरवाज़े के एन बराबर बिजली के मीटर पर रखा कच्ची मिट्टी वाला बर्तन पड़ा हुआ है और किसी के काम आए अज़हर फ़राग پیٹر کو کیا موت پڑی ہے .............. سوچ رہا ہوں باہر جا کر کس سے پوچھوں  پیٹر کو کیا موت پڑی ہے  آج گلی میں  جھاڑو کی آواز سے پہلے دن  نکلا ہے  نظاروں کے اجلے پن کا بھید کھلا ہے  کسی کا تھوکا ہوا کسی کی  راہ گزر میں پڑا ہوا ہے  تہواروں کے دن بھی کام پہ آنے والا کیسے غفلت کر سکتا ہے  ہاں یہ بات الگ ہے پیٹر مر سکتا ہے  اچھا  خیر خدا کی مرضی  ویسے بھی اس کے مرنے سے کالونی میں  کہاں کسی کو فرق پڑے گا شاید  اتنا فرق پڑے گا یہ جو میرے دروازے کے عین برابر  بجلی

Ghazal_Poet_Paras Mazari

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इस रूह पर अभी सरे बिस्तर नहीं किया पाकिज़गी का तजुर्बा छूकर नहीं किया पानी ना दे सका जहां आंसू बहा दिए मैंने किसी ज़मीन को बंजर नहीं किया इस बार चुप सा रह गया सुनकर सवाल ए इश्क़ इस बार दिल ने हाथ भी ऊपर नहीं किया कुछ और इंतज़ार ऐ जाहिर परस्त दोस्त मयार ए ज़िंदगी अभी बेहतर नहीं किया मेहराब और दाग में तफ़रीक़ कैसे हो किस-किस को हमने माथे का झूमर नहीं किया पारस मज़ारी اس روح پر ابھی سرِ بستر نہیں کیا  پاکیزگی کا تجربہ چھوکر نہیں کیا  پانی نہ دے سکا جہاں ، آنسو بہا دیے  میں نے کسی زمین کو بنجر نہیں کیا  اس بار چپ سا رہ گیا سن کر سوالِ عشق  اس بار دل نے ہاتھ بھی اوپر نہیں کیا  کچھ اور انتظار اے ظاہر پرست دوست  معیارِ زندگی ابھی بہتر نہیں کیا  محراب اور داغ میں تفریق کیسے ہو  کس کس کو ہم نے ماتھے کا جھومر نہیں کیا  پارس مزاری

Sher_Poet _Zamir Qais

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मैं क़हक़हे के मिजा़जन ख़िलाफ़ हूं लेकिन यह वह अमल है कि वहशत बयां में आती है ज़मीर कै़स میں قہقہے کے مزاجاً خلاف ہوں لیکن یہ وہ عمل ہے کہ وحشت بیاں میں آتی ہے ضمیر قیس

Ghazal_Poet_Gul Jahan

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कहानी हिज्र की शायद सुनी है पहाड़ों पर उदासी उग पड़ी है मुझे मंजि़ल की जानिब खींचती है चमकती रेत में जो रोशनी है दरख़्तों में नहीं फ़िरक़ा परस्ती  ख़िजां में जिसको देखो मातमी है अकेला हूं मैं और इतना अकेला मेरी खुद से भी कब हमसाएगी है मुसव्विर हूं मैं तेरी खामशी का तुझे आवाज़ मेरी देखनी है मैं शिद्दत में ओसूली आदमी हूं सो अब तर्के मोहब्बत दायमी है गुल जहान کہانی ہجر کی شاید سنی ہے پہاڑوں پر اداسی اُگ پڑی ہے مجھے منزل کی جانب کھینچتی ہے چمکتی ریت میں جو روشنی ہے درختوں میں نہیں فرقہ پرستی خزاں میں جس کو دیکھو ماتمی ہے اکیلا ہوں میں اور اتنا اکیلا مری خود سے بھی کب ہمسایگی ہے ؟ مصور ہوں میں تیری خامشی کا تجھے آواز میری دیکھنی ہے !! میں شدت میں اصولی آدمی ہوں سو اب ترکِ محبت دائمی ہے  گل جہان

Ghazal_Poet _Aftab Aariz

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खौ़फ़ था बला का और रात काफ़ी सर्दी थी मैंने अपने सीने पर एक किताब धर दी थी ख़्वाब ख़्वाब लगता है अब मुझे हर एक मंज़र उसने मेरी आंखों में इतनी नींद भर दी थी कल  उदास देखा था मैंने पहली बार उसको धूप जैसे चेहरे पर शाम जैसी ज़र्दी थी हम छुपाए फिरते थे दिल में अपनी महरूमी देख कर उसे लेकिन सर्द आह भर दी थी मैं सफ़र पर निकला था जब बगैर ज़ादे ज़ार एक दुआ मेरी मां ने माथा चूम कर दी थी एक हसीन धोखा है यह रफाक़ते  दुनिया बेख़बर तुम्हें मैंने पहले ही ख़बर दी थी हर पड़ाव पर मुझको सोचना पड़ा आरिज़ कौन लोग थे जिन पर सहल रह नूर दी थी आफ़ताब आरिज़ خوف تھا بلا کا اور رات کافی سردی تھی میں نے اپنے سینے پر اک کتاب دھر دی تھی خواب خواب لگتا ہے اب مجھے ہر اک منظر اس نے میری آنکھوں میں اتنی نیند بھر دی تھی کل اداس دیکھا تھا میں نے پہلی بار اس کو دھوپ جیسے چہرے پر شام جیسی زردی تھی ہم چھپائے پھرتے تھے دل میں اپنی محرومی دیکھ کر اسے لیکن سرد آہ بھر دی تھی میں سفر پہ نکلا تھا جب بغیر زادِ راہ اک دعا مری ماں نے ماتھا چوم کر دی تھی اک حسین دھوکا ہے یہ رفاقتِ دنیا  بے خبر تمہیں میں نے پہلے

Sher_Poet_ Zubyr Qaisar

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चीख़ रही है ख़ामोशी एक मुद्दत से मैं कानों में उंगली डाले बैठा हूं जुबैर कै़सर چیخ رہی ہے خاموشی اک مدت سے میں کانوں میں انگلی ڈالے بیٹھا ہوں ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ زبیر قیصر

Ghazal_ Poet_ Shahla Khan

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कहीं जवाब कहीं पर दलील झूठी है  मगर हमारी वजा़हत फ़क़त खमोशी है हज़ारों मील की दूरी है दरम्यान मगर कहीं कहीं यह ज़मीं आसमां से मिलती है हव की सिम्त पे इल्ज़ाम रख दिया वरना महक की राह में हायल वह खिड़की है पुकार बर्फ़ के अंदर हनुत हो भी चुकी मगर वह गूंज अभी पर्वतों में बाकी है किसी की अर्जि़यां सुनने से क्या ग़र्ज़ तुमको यह बेनयाज़ी तेरी पत्थरों के जैसी है मजाल है कि कभी छोड़ दे अकेला हमें हमारे साथ हमारी उदासी रहती है मैं मरने लगती हूं लेकिन तेरी सदा फिर से  रुकी रुकी मेरी धड़कन बहाल करती है शहला ख़ान کہیں جواب کہیں پر دلیل جھوٹی ہے مگر ہماری وضاحت فقط خموشی ہے ہزاروں میل کی دوری ہے درمیان مگر کہیں کہیں یہ زمیں آسماں سے ملتی ہے ہوا کی سمت پہ الزام رکھ دیا ورنہ مہک کی راہ میں حائل وہ ایک کھڑکی ہے پکار برف کے اندر حنوط ہو بھی چکی مگر وہ گونج ابھی پربتوں میں باقی ہے کسی کی عرضیاں سننے سے کیا غرض تجھکو یہ بے نیازی تری پتھروں کے جیسی ہے مجال ہے کہ کبھی چھوڑ دے اکیلا ہمیں ہمارے ساتھ ہماری اداسی رہتی ہے میں مرنے لگتی ہوں لیکن تری صدا پھر سے رکی رکی مری دھڑکن بحال کرتی ہے

Sher_Ata_Ur_Rehman Qazi

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पुकारता है ज़मानों की दूरियों से कोई गई रूतों की उड़ाने परों में रख लेना अताउर रहमान क़ाज़ी پکارتا ہے زمانوں کی دوریوں سے کوئی گئی رتوں کی اڑانیں پروں میں رکھ لینا عطاءالرحمن قاضی

Ghazal_Poet Faqeeh Haider

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"غزل " ڈوبتے وقت سفینے کی طرف آتے ہیں  لوگ مرتے ہوئے جینے کی طرف آتے ہیں  اشک بہنے کی اجازت نہیں لیتے مجھ سے  جب محرم کے مہینے کی طرف آتے ہیں  جس طرح آتا ہے لشکر کوئی لشکر کی طرف  زخم ایسے مرے سینے کی طرف آتے ہیں  اہل ِ یثرب سے کہو گریہ کریں نوحے پڑھیں  کربلا والے مدینے کی طرف آتے ہیں  کم ہی لمحات تری یاد کے دیتے ہیں سکون  بیشتر خون ہی پینے کی طرف آتے ہیں کچھ ریا کار ہیں ایسے بھی مرے شہر میں جو بڑی تہذیب سے کینے کی طرف آتے ہیں  لوگ آتے ہیں مرے زخم پرکھنے کے لیے  جوہری جیسے نگینے کی طرف آتے ہیں  جب دہکتا ہے حیاؤں کی تپش سے وہ بدن  تتلیاں جگنو پسینے کی طرف آتے ہیں  فقیہ حیدر डूबते वक्त सफ़ीने की तरफ आते हैं लोग मरते हुए जीने की तरफ आते हैं अश्क बहने की इजाज़त नहीं लेते मुझसे जब मोहर्रम के महीने की तरफ़ आते हैं जिस तरह आता है लश्कर कोई लश्कर की तरफ़ ज़ख़्म ऐसे मेरे सीने में आते हैं अहले यसरब से कहो गिरिया करें नोहे पढ़ें कर्बला वाले मदीने की तरफ़ आते हैं कम ही लम्हात तेरी याद के देते हैं सकूं बेशतर ख़ून ही पीने की तरफ़ आते हैं कुछ रेयाकार है ऐसे भी मेरे शहर में जो