Nazm (कविता)_Poet_Anwar Shamim

उर्दू/हिंदी.......... اردو/ہندی

بلا عنوان
                                                                            ●
جتنے الفاظ
بدن کوزے سے باہر گونجے
اور کڑے کوسوں میں دم توڑ گئے
جتنے الفاظ
چنبیلی کے ہرے منڈوے تلے
چاندنی رات کھلے مرجھاۓ
جتنے الفاظ
بدن زنداں کی دیواروں پر
تیز ناخونوں سے دیتے گئے
بے انت خراش
جتنے الفاظ
کہف نیند میں سوۓ مرے ساتھ
جتنے الفاظ
مرے غار حرا میں اترے
شہر آشوب !
ترے نام کیا !!
ایک حصّہ مری وحشت کا ہے
اور وہ حصّہ مہ طلعت کا ہے
جس کے دامن میں مرے
کوہ و دمن سمٹے ہوئے
جس کی مٹی پہ مری
دل کی زمیں پھیلی ہوئ
کام اب کیا کسی حجت کا ہے
لفظ پہلا وہ
محبّت کا ہے
                                                                           ●
© انورشمیم

बिला उनवान*
        ●
जितने अल्फ़ाज़
बदन कूज़े* से बाहर गूंजे
और कड़े कोसों में दम तोड़ गए
जितने अल्फ़ाज़
चंबेली के हरे मंडवे तले
चांदनी रात खिले मुरझाए
जितने अल्फ़ाज़
बदन ज़िंदां* की दीवारों पर
तेज़ नाख़ूनों से देते गए
बेअंत ख़राश*
जितने अल्फ़ाज़
कहफ़*नींद में सोए मेरे साथ
जितने अल्फ़ाज़
मेरे ग़ारे*हिरा में उतरे
शहरे आशूब !
तेरे नाम किया !!
एक हिस्सा मेरी वहशत* का है
और वो हिस्सा महे-तलअत* का है
जिसके दामन में मेरे
कोहो-दमन* सिमटे हुए
जिसकी मिट्टी पे मेरी
दिल की ज़मीन फैली हुई
काम अब क्या किसी हुज्जत का है
लफ्ज़ पहला वो
मुहब्बत का है !!
         ●
© अनवर शमीम
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बिला उनवान=बिना किसी शीर्षक के/ कूज़ा=मिट्टी का प्याला/ ज़िंदान=जेल ख़ाना,कारागार/ ख़राश=खरोंच/ 
कहफ़-नींद=एक मान्यतानुसार,कहफ़ एक पहाड़ी गुफा जहां हज़ारों वर्ष पहले उस समय के निर्दयी शासक के डर से कुछ लोग जा छुप जिन्हें नींद आ गई, वह सो गए/ ग़ारे-हीर=हिरा नामी पहाड़ी गुफा,जिसमे पैग़म्बर मोहम्मद स•अ• पर पहली बार "वही" उतरी अर्थात आकाशवाणी हुई/ वहशत=घबराहट,बेचैनी,पागलपन/ महे-तलअत= माह का संछिप्त "मह" अर्थात चांद, तलअत यानी चेहरा मतलब चांद जैसा चेहरा, चन्द्रमुखी/ कोहो-दमन=कोह यानी पहाड़, दमन मतलब मिट्टी या पत्थर के ऊंचे नीचे टीले।।
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