Ghazal_Poet _Zulfiqar Zaki
हिसाब ए दिल में जो उल्फ़त के गोशवारे हैं
क़सम ख़ुदा की वह जितने भी हैं तुम्हारे हैं
है और बात कि हम ग़ौर ही नहीं करते
वगरना विस्ल में भी हिज्र के इशारे है
कई बरस कई सदियां असीर हैं इन में
यह चंद पल जो तेरी याद में गुजा़रे हैं
कि जैसे से उलझी हुई डोरियां संवर जाऐं
किसी दुआ ने मेरे बख्त़ यूं संवारे हैं
हवा के दोश पे राकिब ،ग़ुसैल मौजों का
वह तनतना है के सहमे हुए किनारे हैं
ख़मोश बैठ के तकता हूं रोज़ हैरत से
दरूने जा़त भी क्या-क्या हसीं नज़ारे हैं
मेरे कलाम का उनुवान बस मोहब्बत है
हर एक शेर में चाहत के इस्तेआरे रहे हैं
कोई दुआ या कोई विर्द हो ज़की जैसे
शबे फ़िराक़ ,मैंने अश्क यूं शुमारे हैं
ज़ुल्फ़िका़र ज़की
حسابِ دل میں جو الفت کے گوشوارے ہیں
قسم خدا کی وہ جتنے بھی ہیں تمھارے ہیں
ہے اور بات کہ ہم غور ہی نہیں کرتے
وگرنہ وصل میں بھی ہجر کے اشارے ہیں
کئی برس ،، کئی صدیاں اسیر ہیں ان میں
یہ چند پل جو تری یاد میں گزارے ہیں
کہ جیسے الجھی ہوئی ڈوریاں سنور جائیں
کسی دعا نے مرے بخت یوں سنوارے ہیں
ہوا کے دوش پہ راکب ، غصیل موجوں کا
وہ طنطنہ ہے کہ سہمے ہوئے کنارے ہیں
خموش بیٹھ کے تکتا ہوں روز حیرت سے
درونِ ذات بھی، کیا کیا حسیں نظارے ہیں
مرے کلام کا عنوان ، ، بس محبت ہے
ہر ایک شعر میں چاہت کے استعارے ہیں
کوئی دعا یا کوئی ورد ہو ذکی جیسے
شبِ فراق ، میں نے اشک یوں شمارے ہیں
ذوالفقار ذکی
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