Nazm_Piter ko kya moat pari hai _Poet_Azhar Fragh
पीटर को क्या मौत पड़ी है
सोच रहा हूं
बाहर जाकर किससे पूछूं
पीटर को क्या मौत पड़ी है
आज गली में
झाड़ू की आवाज़ से पहले दिन निकला है
नजारों की उजलेपन का
भेद खुला है
किसी का थूका हुआ किसी की
राह गुज़र में पड़ा हुआ है
त्योहारों के दिन भी काम पर आने वाला
कैसे गफ़लत कर सकता है
हां यह बात अलग है पीटर मर सकता है
अच्छा
ख़ैर ख़ुदा की मर्ज़ी
वैसे भी उसके मरने से
कॉलोनी में
कहां किसी को फ़र्क पड़ेगा
शायद
इतना फर्क पड़ेगा
क
यह जो मेरे दरवाज़े के एन बराबर
बिजली के मीटर पर रखा
कच्ची मिट्टी वाला बर्तन पड़ा हुआ है
और किसी के काम आए
अज़हर फ़राग
پیٹر کو کیا موت پڑی ہے ..............
سوچ رہا ہوں
باہر جا کر کس سے پوچھوں
پیٹر کو کیا موت پڑی ہے
آج گلی میں
جھاڑو کی آواز سے پہلے دن
نکلا ہے
نظاروں کے اجلے پن کا
بھید کھلا ہے
کسی کا تھوکا ہوا کسی کی
راہ گزر میں پڑا ہوا ہے
تہواروں کے دن بھی کام پہ آنے والا
کیسے غفلت کر سکتا ہے
ہاں یہ بات الگ ہے پیٹر مر سکتا ہے
اچھا
خیر خدا کی مرضی
ویسے بھی اس کے مرنے سے
کالونی میں
کہاں کسی کو فرق پڑے گا
شاید
اتنا فرق پڑے گا
یہ جو میرے دروازے کے عین برابر
بجلی کے میٹر پر رکھا
کچی مٹی والا برتن پڑا ہوا ہے
اور کسی کے کام آئے گا
Comments
Post a Comment