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Zamir Qais

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हवा के साथ कट रही है उम्र साज़ बाज़ में बना रहा हूं बादबानी कश्तियां जहाज़ में बदन के ज़लज़लों ने दिल को भी हिला के रख दिया लगेगा वक़्त कुछ जुनूं को अपने इरतेकाज़ में सड़क पहाड़ से उतर के वादियों में खो गई धंसा हुआ है ज़हन अभी बर्फ़ के गुदाज़ में ख़ियाम जल रहे हैं दशत में ख़ुदा के सामने बिलक के रो रही हैं सय्यदानियां नमाज़ में हम ऐसे अहद_ए_ बा हुनर में है जहां पे दोस्तो छुपी हुई है बात, बात में तो राज़, राज़ में नहीं नहीं यह तंज़ बंदगी पे तो ज़रा नहीं झुके हुए हैं हम जो बारगाह_ए_बे नयाज़ में मिलेगा लुत्फ़े ज़िंदगी क़दम क़दम पे दोस्ता कहीं-कहीं नशीब में कहीं-कहीं फ़राज़ में करूंगा तर्क_ए_इश्क़ पर मैं बहस जो़र_ओ_शोर से भर लूंगा दम ज़रा सा हर दलील_ए_बे ज्वाज़ में बस एक ज़ख्म हम लिए फिरे गली-गली सदा जो इत्तेफ़ाकन आ गया था चश्म_ए_चारा साज़ में है मेरे लफ्ज़ लफ्ज़ में अब उसका हुसन_ए_साहरी जो हूर_ए_ज़ाद कल मिली थी मुझको बुज विलाज़ में कोई अताओं के लिए मुक़र्ररा घड़ी नहीं यही तो फ़र्क़ है मसीह व सांता क्लॉज़ में वह इसलिए कि झुंड में सभी पर छांव है मेरी मैं जल रहा हूं सिर्फ़ अपने जुर्म_ए_इम्तिय

Ghazal_Poet_Tanveer Qazi

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غزل ۔۔۔۔۔۔۔۔۔ سمندر سے جو میری گُفتگُو تھی اُسے مچھلی بھی سُن کر سُرخ رُو تھی کہیں جاری تھی پیوند کاریِ دل وہ نیلی آنکھ مائل بہ رفُو تھی ہمیں موسم مقیّد کر چکا تھا صدائے آئینہ بھی خُوش گُلو تھی ہرن پہلو بچاتے ہف گئے تھے ہماری خاک اُڑتی کُو بہ کُو تھی لگے وہ اُون کا بیوپار کرنے کوئی ایسی چراگاہوں میں بُو تھی کوئی لمحہ گِھرا تھا پانیوں میں کوئی حیرت کنارِ آب جُو تھی سبھی موزیل کی پوشاک میں تھے چہار اطراف اک منٹو کی بُو تھی مسافر کشتیوں میں اونگھتے تھے کسی قزاق کی آنکھوں میں لُو تھی کبھی آتے شجر پینگیں جُھلاتے کُھدے ناموں کے بھیتر آرزو تھی ابھی کچھ بھید عُریاں ہو رہے تھے ابھی کچھ کائی کے نیچے نمُو تھی tanveerqaazzii समुंदर से जो मेरी गुफ़्तगु थी उसे मछली भी सुन कर सुर्ख़ रू थी कहीं जारी थी पेवंद कारी_ए_दिल वह नीली आंख मायल ब रफ़ू थी हमें मौसम मुक़य्यद कर चुका था सदा_ए_आईना भी ख़श गुलू‌ थी हरण पहलू बचाते हफ़ गए थे हमारी खा़क उड़ती कू ब कू थी लगे वह ऊन का व्यापार करने कोई ऐसी चरागाहों ‌ में हू‌ थी कोई लम्हा घिरा था पानियों में कोई हैरत किनारे आब जू थी स

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#Urdu Poetry #Hindi Poetry

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Sheir_Poet_Zubair Qaisar

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कुछ और भी मुझे लगने लगी हसीं दुनिया वो शहर_ए_ख़्वाब से निकला है मुस्कुराते हुए ज़ुबैर क़ैसर کچھ اور بھی مجھے لگنے لگی حسیں دنیا وہ شہر ۔ خواب سے نکلا ہے مسکراتے ہوئے ۔۔۔۔ ۔۔۔ زبیر قیصر

Ghazal_Poet_Maouvez Hasan

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उदासी चिड़चिड़ापन रतजगा है कोई आसेब‌ मुझ में पल रहा है जहां की‌ इरतकाई साजि़शों में जमीं एक मो'जजा़ती हादसा है मेरे अंदर का आवारा मुसाफ़िर ख़्यालों की ट्रैफ़िक में फंसा है ख़सारों पर भी खुल कर हंस रहे हैं हमारा कर्ब बूढ़ा हो गया है कई हफ़्तों से सरवत पढ़ रहा था और अब दिल पटरियों पर चल रहा है मुसव्विर ने मेरा चेहरा बनाकर ख़सारा कैनवस पर धर दिया है तुम्हारी ओर देखा, और देखा नदी का रंग पीला पड़ गया है मैं उसके वसवसों में आ गया हूं वह जिससे टेलिफो़निक राब्ता है घड़ी की सुइयां उल्टी घुमाकर मुक़द्दर हम को थप्पड़ मारता है मोहब्बत की लड़ाई में मु'अव्विज़ तकल्लुफ़ इबतदाई सानेहा है मु'अव्विज़ हसन اداسی چڑچڑاپن رتجگا ہے  کوئی آسیب مجھ میں پل رہا ہے  جہاں کی ارتقائی سازشوں میں  زمیں اک معجزاتی حادثہ ہے  مرے اندر کا آوارہ مسافر  خیالوں کی ٹریفک میں پھنسا ہے خساروں پر بھی کھل کر ہنس رہے ہیں ہمارا کرب بوڑھا ہو گیا ہے   کئی ہفتوں سے ثروت پڑھ رہا تھا اور اب دل پٹریوں پر چل رہا ہے  مصور نے مرا چہرہ بنا کر  خسارہ کینوس پر دھر دیا ہے تمہاری اور دیکھا، اور دیکھا ندی کا رنگ پیلا پڑ گیا ہے   م

Ghazal_, Poet_Faqeeh Haider

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कूफ़ियो जैसे मोमनीन के नाम यह गज़ल है मुनाफ़िकी़न के नाम एक नारा खि़रद की हालत में दिन-ब-दिन बढ़ते जाहिलीन के नाम ख़ाक के साथ हो गया हूं ख़ाक और मैं क्या करूं ज़मीन के नाम यह मेरा आख़री तमाशा है सब की सब दाद शायकी़न के नाम रोज़ लिखता हूं पानियों पर मैं कर्बला तेरे जा़यरीन के नाम एक तवायफ़ के जिस्म पर लिखे हैं शहर के सारे सालेहीन के नाम फ़कीह ‌हैदर کوفیوں جیسے مومنین کے نام  یہ غزل ہے منافقین کے نام  ایک نعرہ خرد کی حالت میں  دن بہ دن بڑھتے جاہلین کے نام  خاک کے ساتھ ہو گیا ہوں خاک  اور میں کیا کروں زمین کے نام یہ مرا آخری تماشاہے  سب کی سب داد شائقین کے نام   روز لکھتا ہوں پانیوں پر میں  کربلا تیرے زائرین کے نام  اک طوائف کے جسم پر لکھے ہیں  شہر کے سارے صالحین کے نام  فقیہ حیدر