Ghazal_Poet_Iqbal Naveed
मैं था कि मेरे साथ कोई जागता रहा
लगता है सारी रात कोई जागता रहा
थपकी के साथ कोई सुलाता रहा मुझे
मै सो गया तो हाथ कोई जागता रहा
ऐसा सफ़र था नींद में चलते रहे क़दम
जैसे दरून_ए_ज़ात़ कोई जागता रहा
पहलू बदल बदल के रहे खेत में मगन
होने लगी थी मात कोई जागता रहा
चोरों की तरह वक़्त गुज़ारा मचान पर
शब भर लगा के घात कोई जागता रहा
इक सम्त शोर दिल का मगर दूसरी तरफ़
ख़ामोश इहतेयात कोई जागता रहा
वो आग थी नवीद कि जलती रही ज़मीं
बहता रहा फ़रात कोई जागता रहा
इक़बाल नवीद
غزل
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میں تھا کہ میرے ساتھ کوئی جاگتا رہا
لگتا ہے ساری رات کوئی جاگتا رہا
تھپکی کے ساتھ کوئی سُلاتا رہا مجھے
میں سو گیا تو ہاتھ کوئی جاگتا رہا
ایسا سفر تھا نیند میں چلتے رہے قدم
جیسے درونِ ذات کوئی جاگتا رہا
پہلو بدل بدل کے رہے کھیل میں مگن
ہونے لگی تھی مات کوئی جاگتا رہا
چوروں کی طرح وقت گزارا مچان پر
شب بھر لگا کے گھات کوئی جاگتا رہا
اک سمت شور دل کا مگر دوسری طرف
خاموش احتیاط کوئی جاگتا رہا
وہ آگ تھی نوید کہ جلتی رہی زمین
بہتا رہا فرات کوئی جاگتا رہا
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اقبال نوید
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