Ghazal_Poet_Farrukh Adeel
मुस्कुराता था जहां कोई भंवर आता था
तैरने का मुझे ऐसा भी हुनर आता था
वक़्त ने धुंध सी भर दी है मेरे आंखों में
पहले पहले तो बहुत साफ़ नज़र आता था
नाम लेता था मैं उस शख्स का तारीकी में
और सूरज मेरे पहलू में उतर आता था
आंख से होता हुआ जिस्म की बुनियाद तलक
एक सैलाब था जो बारे दिगर आता था
दर-बदर ख़ाक उड़ाते हुए फिरता हूं जहां
इन्हीं रस्तों पे कभी मेरा भी घर आता था
कोई करता था किनारे से इशारा मुझको
डूबते डूबते मैं फिर से उभर आता था
फ़र्रुख़ अदील
غزل
مسکراتا تھا جہاں کوئی بھنور آتا تھا
تیرنے کا مجھے ایسا بھی ہنر آتا تھا
وقت نے دھند سی بھر دی ہے مری آنکھوں میں
پہلے پہلے تو بہت صاف نظر آتا تھا
نام لیتا تھا میں اُس شخص کا تاریکی میں
اور سورج مرے پہلو میں اتر آتا تھا
آنکھ سے ہوتا ہوا جسم کی بنیاد تلک
ایک سیلاب تھا جو بارِ دگر آتا تھا
دربدر خاک اڑاتے ہوئے پھرتا ہوں جہاں
انہی رستوں پہ کبھی میرا بھی گھر آتا تھا
کوئی کرتا تھا کنارے سے اشارہ مجھ کو
ڈوبتے ڈوبتے میں پھر سے ابھر آتا تھا
Comments
Post a Comment