Ghazal .Poet _ Faqeeh Haider
हवा के सामने हर फूल से लिपटना है बिखरता जिस्म हूं मुझको यूं ही सिमटना है कोई सितारा कोई चांद चाहिए तो बता तेरे फकीर ने कश़कोल को उलटना है मैं तेरा हिज्र लिए सांस ले रहा हूं मगर ये वक़्त लगता नहीं यार मुझसे कटना है हमारे पेट ख़ुदा भर रहा है मिस्रों से हमारे हक़ में हमेशा यह रिज्क बटना है ज़मीन राख लगे और आसमान धुआं न जाने कैसे कहां कब ये खौफ छटना है ये सरहदों में मुक़य्यद मोहब्बतें कब तक गुले "लहोर" हूं मैं तू "हवाए" पटना है हमारे बाज़ू कटेंगे अलम संभालते वक़्त हमारी मशको ने दरिया किनारे फटना है अधूरे ख़्वाब में गुंजाइश ए वफ़ा क्या हो तुझे पढ़ा के मुझे जाने कितना घटना है हर एक चीज की होती है बाज़गश्त फ़कीह वह जा रहा है अगर तो उसे पलटना है फ़कीह हैदर ہوا کے سامنــے ہر پھـــول سے لپٹنا ہے بکــھرتا جســـم ہوں مجھ کو یونہی سمٹنا ہے کوئـــی ستارہ کوئـــی چاند چاہیـــے تو بتا ترے فقیر نے کشـــکول کو الٹنا ہے میں تیرا ہجر لیے سانس لے رہا ہوں مگر یہ وقت لگتا نہـــیں یار مجھ سے کٹنا ہے ہمارے پیٹ خـــدا بھـــر رہا ہے ...
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