Nazm _Khalipan me neend ki khwahish _Poet _Ali zeyoof

खा़लीपन में नींद की ख्वाहिश

ग़शी नींद की कहकशाओ में प्रवेश करने के लिए
मदार मुतॶय्यन नहीं कर सकती
हम औंधे मुंह रेंग कर भी 
तैरते सूरज से आगे नहीं निकल सकते
 हमारे निशान मिटाता हुआ चांद
मंजि़लें सर करते हुए
खजूर की पुरानी  शाख़़ जैसा हो जाता है
रात दिन पर सबक़त नहीं ले सकती
अंतरिक्ष में तैरने के लिए
 मदारो का पास लाज़िम है
शम्सी चकरी को उल्टा घुमाने से
रुपहली झूला टूट जाएगा
दूरी व  नज़दीकी को पसे पुष्त डालकर
हम प्लूटो  को घना गन नग़मे
साकिन ज़मीन के अकब से सुना सकते हैं
ज़हनी सुबक गांम घोड़ों को
मेहमेज़े वहशत लगाकर
दरियाओं का सीना चीरते जा निकलें
 परले किनारे पर
जहां उजली पोशाक  पहने 
नींद हमारी मुन्तजि़र है
हमारे दिल पर झुर्रियों का अंबार लगा है
हमारी पोरों के प्यालों से दुआ चुरा ली गई है
तसकीन‌ की र्ग़ज़ से बेदारी हमारी
 आंखों को नोच लेगी
"खा़लीपन में नींद की ख्वा़हिश करना बेवकूफी के मुतरादिफ़है



अली जयूफ़

خالی پن میں نیند کی خواہش 

         غشی نیند کی کہکشاؤں میں
 پرویش کرنے کیلئے مدار متعین نہیں کر سکتی۔
ہم اوندھے منہ رینگ کر بھی 
تیرتے سورج  سے آگے نہیں نکل سکتے۔
ہمارے نشان مٹاتا ہوا چاند
  منزلیں سر کرتے ہوئے
کھجور کی پرانی شاخ جیسا ہو جاتا ہے۔
رات دن پہ سبقت نہیں لے سکتی
انترکش میں تیرنے کیلئے مداروں کا پاس لازم ہے۔
شمسی چکری کو الٹا گھمانے سے
روپہلی جھولا ٹوٹ جائے گا۔
 دوری و نزدیکی کو پسِ پشت ڈال کر 
ہم پلوٹو کو گھناگھن نغمے
ساکن زمین کے عقب سے سنا سکتے ہیں۔
ذہنی سبک گام گھوڑوں کو مہمیزِ وحشت لگا کر
دریاؤں کا سینہ چیرتے جا نکلیں پرلے کنارے پر
جہاں اجلی پوشاک پہنے نیند ہماری منتظر ہے۔
ہمارے دل پر جھریوں کا انبار لگا ہے۔
ہماری پوروں کے پیالوں سے دعا چرا لی گئی ہے۔
تسکین کی غرض سے بیداری ہماری آنکھوں کو نوچ لے گی۔

        " خالی پن میں نیند کی خواہش کرنا بےوقوفی کے مترادف ہے"

      علی زیوف

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