Ghazal _Poet Syed Ali shahrukh

चमन मिले भी तो सेहरा शुमार होते हैं
यह हादसात यहां बार-बार होते हैं

यह आरजूं है उन बस्तियों में जा निकलूं
कि अहले जर्फ़ जहां बेशुमार होते हैं

वह जितनी देर में कश्ती क़रीब लाते
 हैं
हम इतनी देर में दरिया के पार होते हैं

हमारे साथ मोहब्बत न कर दिलासा दे
हम ऐसे लोग ग़रीबे दयार होते हैं

विसाल व हिज़्र  को यकजा करेंगे हम कैसे

यह दो किनारे कहां हम कनार होते हैं

ना आप हौसला देते हैं रोने वालों को
ना आप शामिले चीख़ो पुकार  होते हैं

अजीब रंगे वफा है हमारी महफ़िल में
हमारे यार ज़माने के यार होते हैं

हम अपने दर्द तो तहरीर कर नहीं सकते
तुम्हारे जि़क्र पर बस शर्मसार होते हैं

सैयद अली शाहरुख

چمن ملیں بھی تو صحرا شمار ہوتے ہیں
یہ حادثات یہاں بار بار ہوتے ہیں 

یہ آرزو ہے کہ ان بستیوں میں جا نکلوں 
کہ اہل ظرف جہاں بے شمار ہوتے ہیں 

وہ جتنی دیر میں کشتی قریب لاتے ہیں 
ہم اتنی دیر میں دریا کے پار ہوتے ہیں 

ہمارے ساتھ محبت نہ کر دلاسہ دے
ہم ایسے لوگ غریب دیار ہوتے ہیں 

وصال و ہجر کو یکجا کریں گے ہم کیسے
یہ دو کنارے کہاں ہم کنار ہوتے ہیں 

نہ آپ حوصلہ دیتے ہیں رونے والوں کو 
نہ آپ شامل چیخ و پکار ہوتے ہیں 

عجیب رنگء وفا ہے ہماری محفل کا 
ہمارے یار زمانے کے یار ہوتے ہیں 
ھم اپنے درد تو تحریر کر نہیں سکتے
تمہارے ذکر پہ بس شرمسار ہوتے ہیں 

سید علی شاہ رُخ بخاری 
لاہور پنجاب پاکستان

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